शनिवार, 1 अक्तूबर 2016

यह क़ानून गरीबी, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी आदि समस्याओं को सिर्फ चार महीनें में ख़त्म कर देगा

अध्याय . (1.1) क्या यह मजाक है ?
(1.2) राष्ट्रीय स्तर पर प्रस्तावित ‘जनता की आवाज- पारदर्शी शिकायत प्रणाली’ की सरकारी अधिसूचना का क़ानून-ड्राफ्ट
(1.3) क्या भारत में सभी नागरिकों के पास इस कानून का उपयोग करने के लिए इन्टरनेट है ? और अन्य प्रश्न
(1.4) ‘जनता की आवाज -पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली’ का एक लाइन में सार
(1.5) जनता की आवाज-पारदर्शी शिकायत प्रणाली की धारा 1 के बारे में कुछ और बातें
(1.6) ये तीन लाइन का सरकारी आदेश आम जनता को पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव/सुझाव डालने का अधिकार देगा
(1.7) तो कैसे ‘जनता की आवाज-पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली गरीबी को 3-4 महीने में कम कर देगा ?
(1.8) करोड़ों नागरिकों को यह कैसे पता चलेगा कि नागरिकों और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी के लिए (एम.आर.सी.एम) शपथपत्र प्रस्तुत हो गया है ?
(1.9) जनता की आवाज – पारदर्शी शिकायत प्रणाली का सरकारी आदेश पुलिस में भ्रष्टाचार को कम कैसे करेगा ?
(1.10) उन नेताओं, बुद्धिजीवियों की निंदा कैसे करें जो ‘जनता की आवाज – पारदर्शी शिकायत प्रणाली’ का विरोध करते है ?
(1.11) ‘जनता की आवाज – पारदर्शी शिकायत प्रणाली को लागू करवाने में आप कैसे मदद कर सकते हैं ?
(1.12) किसी ने इस बारे में पहले क्यों नहीं सोचा ?
(1.13) कैसे ‘जनता की आवाज -पारदर्शी शिकायत प्रणाली’ राजनैतिक अंकगणित का शून्य है ?
(1.14) सारांश . =============== .
(1.1) क्या यह मजाक है ?
भारत के बुद्धिजीवियों ने यह दावा किया है कि गरीबी की समस्या और पुलिस में व्याप्त भ्रष्टाचार, न्यायलयों में व्याप्त भ्रष्टाचार, शिक्षा में व्याप्त भ्रष्टाचार आदि समस्याऐं इतनी जटिल हैं कि इन्हें कम करने में कई दशक लगेंगे और बहुत ही कठिन परिश्रम करना होगा।
तब यहाँ ‘प्रजा अधीन राजा’ समूह सामने आता है और यह दावा करता है कि जनता की आवाज – पारदर्शी शिकायतप्रणाली (टी सी पी) की केवल तीन लाइन की यह प्रस्तावित सरकारी अधिसूचना गरीबी, पुलिस, न्यायालय, शिक्षा आदि में व्याप्त भ्रष्टाचार खत्म कर देगी और वह भी मात्र चार महीने के भीतर।

भारतीय राजपत्र की सरकारी अधिसूचना (गेजेट नोटिफिकेशनक्या है
केन्द्रीय और राज्य सरकारों द्वारा प्रकाशित पुस्तिका , जो लगभग हर महीने प्रकाशित की जाती है और इसमें मंत्रियों द्वारा जिला कलेक्टर , विभागीय सचिव आदि के लिए आदेश होते हैं | राजपत्र / सरकारी अधिसूचना (आदेश) का नमूना यहां देखा जा सकता है :
http://rajswasthya.nic.in/17%20DT.%2006.01.10.pdf
यदि नागरिकों, कार्यकर्ताओं को सरकार में कोई बदलाव चाहिए, तो उन्हें मंत्रियों से प्रस्तावित बदलावों को भारतीय राजपत्र में प्रकाशित करने की मांग करनी चाहिए | जब प्रस्तावित क़ानून-ड्राफ्ट भारतीय राजपत्र में आयेंगे , तभी और केवल तभी सरकार में बदलाव आयेंगे | यदि कोई कार्यकर्त्ता-नेता सरकारी अधिसूचना की जानकारी दिए बिना किसी बदलाव की मांग कर रहा है , तो इसका मतलब है कि वो नागरिकों का समय बरबाद कर रहा है। और ज्यादातर संभावना है कि वो ऐसा जान बूझकर कर रहा है | इसीलिए, हम सभी कार्यकर्ताओं से विनती करते हैं कि वे आवश्यक बदलावों के लिए सरकारी अधिसूचना (भारत का राजपत्र) के क़ानून-ड्राफ्ट्स पर ध्यान केंद्रित करें।
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सरकारी अधिसूचना का हर एक क़ानूनड्राफ्ट एक छोटा लेकिननिश्चित बदलाव लाता है। उदहारण के लिए राशन कार्ड प्रणाली सरकारी अधिसूचनाओं से बनायी गयी थी, जिसने राशन उपलब्ध करवा कर करोड़ों कि जान बचायी | गुजरात में 1940 के दशक के अंतिम और 1950 के दशक में भूमि सुधार अच्छे तरीके से शुरू हो पाये, क्योंकि उस समय के मुख्यमंत्री देभर भाई ने अच्छे और आसान क़ानून-ड्राफ्ट लागू किये, जबकि भारत के ज्यादातर अन्य राज्यों में भूमि-सुधार असफल हुए क्योंकि वहाँ के मुख्यमंत्रियों ने जान-बूझ कर ढेरों कमियाँ वाले क़ानून-ड्राफ्ट प्रकाशित किये थे।
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और मैं पूरे आत्मविश्वास के साथ कह सकता हूँ कि प्रस्तावित पारदर्शी शिकायत प्रणाली क़ानून-ड्राफ्ट का कोई नकारात्मक साइड इफेक्ट नहीं है और यह क़ानून-ड्राफ्ट शत-प्रतिशत संवैधानिक है। यह सभी मौजूदा कानूनों के साथ लागू रह सकता है और इसे सांसदों/विधायकों के विधान की आवश्यकता नहीं है – इसे लागू करने के लिए सिर्फ एक सरकारी अधिसूचना काफी होगी। क्योंंकि जनता की आवाज – पारदर्शी शिकायत प्रणाली के सभी तीनों खण्ड पहले ही प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री आदि की मौजूदा शक्तियों के तहत आते हैं। क्या किसी इतनी छोटी सरकारी अधिसूचना का अस्तित्व हो सकता है, जो इतना बड़ा परिवर्तन ले आये ? भारत के अधिकांश बुद्धिजीवियों ने इस बात को मानने से इन्कार कर दिया है कि कानून का ऐसा कोई मामूली और छोटा सा क़ानून-ड्राफ्ट गरीबी और भ्रष्टा‍चार को एक प्रतिशत भी कम कर सकता है। या तो ये सभी बुद्धिजीवी लोग गलती पर हैं या मैं 200 प्रतिशत झूठा और 400 प्रतिशत पागल या जोकर हूँ !!! आप पाठकगण यह निर्णय कर सकते हैं कि ये बुद्धिजीवी लोग गलत हैं या मैं । बशर्ते आप इस पाठ को और इसके बाद के अगले तीन पाठो को पढ़ने का फैसला करे। और फिर मैं यह भी दावा करूंगा कि मेरे द्वारा प्रस्तावित तीन पंक्तियों की जनता की आवाज – पारदर्शी शिकायत प्रणाली की सरकारी अधिसूचना गरीबी को कम करने और पुलिस/ न्यायलय/ शिक्षा आदि के भ्रष्टाचार में कमी लाने में बहुत कारगर सिद्ध होगी। सिर्फ चार से आठ माह के भीतर ही पारदर्शी शिकायत प्रणाली की सरकारीअधिसूचना सेनाअर्थव्यवस्थागरीबीबेरोजगारी और सरकार के सभी विभागों में सुधार ला देगी। इतने पर भी प्रस्तावित पारदर्शी शिकायत प्रणाली का कोई साइड इफेक्ट नहीं है। यदि मेरे ये सभी दावे कभी सत्य साबित हो गए तो सभी बुद्धिजीवियों के लिए यह एक अत्यन्त शर्मनाक घटना होगी।
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आखिरकार, यह तीन लाइन की प्रस्तावित पारदर्शी शिकायत प्रणाली की सरकारी अधिसूचना क्या है और कैसे यह अधिसूचना इन सभी समस्याओं का समाधान कर देगी, और वह भी मात्र चार महीने के अंदर ?
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और एक अन्य प्रश्न यह उठता है कि —- मैं कैसे कार्यकर्ताओं और जनता को एकजुट करने का प्रयास करूं कि वे प्रधानमंत्री को पारदर्शी शिकायत प्रणाली के क़ानून-ड्राफ्ट पर हस्ताक्षर करने को विवश कर दें ?
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इस संबंध में मैं एक ज्यादा बड़ा दावा करता हूँ कि, यदि भारत में मात्र 2 लाख भ्रष्टाचार विरोधी और गरीबों के हमदर्द, कार्यकर्ता गण प्रति सप्ताह केवल दो घंटे का समय 13वें अध्याय में मेरे द्वारा प्रस्तावित 30-40 छोटी-छोटी कार्रवाइयों पर अमल करने के लिए दें तो एक साल से भी कम समय के अंदर उनकी कार्रवाई एक अहिंसात्मक जन-आन्दोलन का रूप ले लेगी जो प्रधानमंत्री को पारदर्शी शिकायत प्रणाली कानून या एक ऐसे कानून पर ह्स्ताक्षर करने को विवश कर देगी जिसमें जनता की आवाज – पारदर्शी शिकायत प्रणाली की धाराएं सम्मिलित होगी।
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(1.2) राष्ट्रीय स्तर पर प्रस्तावित ‘जनता की आवाज– पारदर्शी शिकायत प्रणाली‘ की सरकारी अधिसूचना काक़ानूनड्राफ्ट :
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प्रस्तावित सरकारी अधिसूचना में नीचे दिए अनुसार केवल तीन खण्ड् हैं। कृपया ध्यान दें कि तीसरा खंड महज एक घोषणा है। इसलिए इस प्रस्तावित ‘जनता की आवाज – पारदर्शी शिकायत प्रणाली’ की सरकारी अधिसूचना में लागू करने के लिए केवल दो ही क्रियाशील खण्ड हैं।
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पटवारी कौन है ?
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पटवारी गांव का अधिकारी है जो भूमि/जमीन का रिकार्ड रखता है | 2-3 गांव के बीच , एक पटवारी होता है और कुछ शहरों में ,पटवारी के बदले `नागरिक केन्द्र क्लर्क` होता है | इस प्रकार आप निर्णय कर सकते हैं `पटवारी` का नाम स्थानीय भाषा में और आपके राज्य में क्या है | पटवारी के कुछ अन्य पर्याय हैं – तलाटी ,ग्राम अधिकारी , लेखपाल आदि |
मैं सभी भारतीय नागरिकों से अनुरोध करता हूँ कि वे प्रधानमंत्री पर निम्नलिखित अधिसूचना पर हस्ताक्षर करनेका दबाव डालें :
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=====ड्राफ्ट का आरम्भ=======
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  1. [कलेक्टर (और उसके क्लर्क) के लिए निर्देश ]
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कोई भी नागरिक मतदाता, यदि खुद हाजिर होकर, एफिडेविट पर अपनी सूचना अधिकार का आवेदन अर्जी / भ्रष्टाचार के खिलाफ फरियाद / कोई प्रस्ताव या कोई अन्य एफिडेविट कलेक्टर को देता है और प्रधानमंत्री की वेब-साईट पर रखने की मांग करता है, तो कलेक्टर (या उसका क्लर्क) उस एफिडेविट को प्रति पेज 20 रूपये का लेकर, सीरियल नंबर देकर, एफिडेविट को स्कैन करके प्रधानमंत्री की वेबसाइट पर रखेगा, नागरिक के वोटर आई.डी. नम्बर के साथ, ताकि सभी बिना लॉग-इन के वे एफिडेविट देख सकें ।
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  1. [पटवारी के लिए निर्देश ]
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(2.1) कोई भी नागरिक मतदाता यदि धारा-1 द्वारा दी गई अर्जी या एफिडेविट पर आपनी हाँ या ना दर्ज कराने मतदाता कार्ड लेकर आये, तो 3 रुपये का शुल्क लेकर पटवारी नागरिक का मतदाता कार्ड संख्या, नाम, उसकी हाँ या ना को कंप्यूटर में दर्ज करके रसीद दे देगा। नागरिक की हाँ या ना प्रधानमंत्री की वेब-साईट पर आएग । गरीबी रेखा के नीचे के नागरिकों के लिए फीस 1 रूपये होगी ।
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(2.2) नागरिक पटवारी के दफ्तर जाकर किसी भी दिन अपनी हाँ या ना, बिना किसी शुल्क के रद्द कर सकता है और तीन रुपये देकर बदल सकता है ।
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(2.3) कलेक्टर एक ऐसा सिस्टम भी बना सकता है, जिससे मतदाता का फोटो, अंगुली के छाप को रसीद पर डाला जा सके | और मतदाता के लिए फीडबैक (पुष्टि) एस.एम.एस. सिस्टम बना सकता है |
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(2.4) प्रधानमंत्री एक ऐसा सिस्टम बना सकता है, जिससे मतदाता अपनी हाँ या ना, 10 पैसे देकर एस.एम.एस. द्वारा दर्ज कर सके |
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  1. [ सभी के लिए ]
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ये कोई रेफेरेनडम (जनमत-संग्रह) नहीं है | यह हाँ या ना अधिकारी, मंत्री, जज, सांसद, विधायक, आदि पर अनिवार्य रूप से लागू नहीं होगी । लेकिन यदि भारत के 40 करोड़ नागरिक मतदाता, किसी अर्जी, फरियाद पर हाँ दर्ज करें, तो प्रधानमंत्री उस फरियाद, अर्जी पर ध्यान दे भी सकते हैं या ऐसा करना उनके लिए जरूरी नहीं है, या प्रधानमंत्री इस्तीफा दे सकते हैं । प्रधानमंत्री का निर्णय अंतिम होगा ।
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====== ड्राफ्ट की समाप्ति ==========
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मैं जनता की आवाज – पारदर्शी शिकायत प्रणाली या टीसीपी कानून का सार इस प्रकार प्रस्तुत करता हूँ :-
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यदि कोई नागरिक चाहे तो कलेक्टर के कार्यालय में जाकर प्रधानमंत्री की वेबसाइट पर सूचना का अधिकारआवेदन पत्र डाल सकता है।
यदि कोई नागरिक किसी आवेदन पत्र या शिकायत आदि का समर्थन करना चाहे तो वह तलाटी/पटवारी केकार्यालय में जाकर 3 रूपए शुल्क देकर प्रधानमंत्री की वेबसाइट पर अपना समर्थन दर्ज कर सकता है।
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तीन लाइनो का यह प्रस्तावित कानून गरीबी और भ्रष्टाचार को केवल चार महीनों में ही कम कर देगा !!
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(1.3) क्या भारत में सभी नागरिकों के पास इस कानून का उपयोग करने के लिए इन्टरनेट है ? और अन्य प्रश्न
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प्रश्न-1 : क्या भारत में सभी नागरिकों के पास इस सरकारी अधिसूचना का उपयोग करने के लिए इन्टरनेट है ?
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ये सबसे आम, लेकिन गलत प्रश्न है जिसका सामना मैं प्रस्तावित पारदर्शी शिकायत प्रणाली की सरकारी अधिसूचना के सम्बन्ध में करता हूँ। मैं इसे गलत प्रश्न कहता हूँ, क्योंकि प्रस्तावित कानून का प्रयोग शुरू करने के लिए नागरिकों को इन्टरनेट कनेक्शन की जरुरत बिलकुल नहीं पड़ती। चाहे नागरिकों के पास इन्टरनेट हो या नहीं , उन्हें कलेक्टर के कार्यालय में स्वयं जा कर ही अपनी शिकायत अथवा सूचना का अधिकार आवेदन पत्र जमा करना होगा। और चाहे उनके पास इन्टरनेट कनेक्शन हो या नहीं , उन्हें तलाटी (लेखपाल, पटवारी, ग्राम-अधिकारी) के कार्यालय में स्वयं जा कर ही किसी शिकायत अथवा शपथपत्र/एफिडेविट पर हाँ दर्ज करना होगा। इसलिए इस कानून का उपयोग करने के लिए किसी नागरिक के पास इंटरनेट की बिलकुल आवश्यकता नहीं है। और यदि किसी व्यक्ति के पास इन्टरनेट है तो इससे कोई फर्क नही पड़ेगा। इसलिए इस कानून का उपयोग भारत के सभी नागरिक मतदाता कर सकते हैं। यदि उसके पास इन्टरनेट है तो वो शपथपत्र/एफिडेविट को आसानी से पढ़ सकते हैं। लेकिन बिना इंटरनेट वाला व्यक्ति भी ऐसा कर सकता है। उसे केवल किसी ऐसे व्यक्ति से कहने की जरूरत है जिसके पास इन्टरनेट कनेक्शन है।
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प्रश्न-2 : क्या धनिक/विशिष्ट वर्ग अनुमोदन/स्वीकृति को पैसेगुंडे या अन्य तरीके से प्रभावित नहीं करेंगे ?
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धारा-2 कहती हैं कि कोई भी नागरिक धारा-1 अनुसार दर्ज किये गए शिकायत/प्रस्ताव पर हाँ/न दर्ज कर सकता है और वो पारदर्शी होगा | लेकिन क्या कोई भी विशिष्ट वर्ग या धनिक 100 करोड़ खर्च कर सकता है, और 1 करोड़ लोगों को अपने पक्ष में हाँ दर्ज करने के लिए नहीं बोल सकता है ? कृपया धारा – 2.2 भी पढिये | इस धारा के अनुसार नागरिक किसी भी दिन अपनी हाँ/ना बदल सकता है | तो यदि करोड़ों नागरिकों को ‘हाँ’ दर्ज करने के लिए पैसे मिले हैं , तो अगले दिन ही वे ‘हाँ’ को ‘ना’ में बदल सकते हैं | कोई भी व्यक्ति चाहे वह कितना ही धनी हो, करोड़ों नागरिकों को नियंत्रित नहीं कर सकता, चाहे उसके पास पूरी सेना ही क्यों न हो | तो धनिक/विशिष्ट वर्ग को रोज रु.100 करोड़ खर्च करना पड़ेगा और कुछ ही हफ़्तों या महीनों में धनिको के सारे पैसे समाप्त हो जाएँगे | इस प्रक्रिया के अनुसार भारत के सारे धनिक मिलकर भी करोड़ों नागरिकों को खरीद नहीं सकते | इसिलिय धारा – 2.2 ये सुनिश्चित करता है कि ये प्रक्रिया धन-शक्ति, गुंडा-शक्ति या मीडिया-शक्ति से प्रभावित नहीं होगा |
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(1.4) ‘जनता की आवाज –पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली‘ का एक लाइन में सार
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‘जनता की आवाज-पारदर्शी शिकायत प्रणाली का एक लाइन में सार इस प्रकार है — यदि कोई नागरिक चाहे तोकलेक्टरउसकी शिकायत/प्रस्ताव/सुझाव को शुल्क लेकर प्रधानमंत्री की वेबसाईट पर डाल देगा।
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किसी शिकायत पर हाँ/ना दर्ज कराने की नागरिक को अनुमति देना इसलिए आवश्यक है ताकि यदि दस हजार नागरिकों की शिकायत एक ही हो तो सभी दस हजार लोगों को कलेक्टर के कार्यालय में जाने और प्रति पेज 20 रूपए का भुगतान करने की आवश्यगकता नहीं हो — केवल एक व्यक्ति को कलेक्टर के कार्यालय में जाने की जरुरत होगी और शेष व्यक्ति उसी शिकायत पर स्थानीय तलाटी अथवा पटवारी के कार्यालय में मात्र 3 रूपए का भुगतान करके अनुमोदन दर्ज कर सकते हैं। इस तरह धारा 3, धारा 1 का मात्र पुन:कथन है। और प्रधानमंत्री की वेवसाइट पर जवाब डालना फिर से धारा 1 का पुन:कथन है ।
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(1.5) जनता की आवाजपारदर्शी शिकायत प्रणाली की धारा 1 के बारे में कुछ और बातें :
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पारदर्शी शिकायत प्रणाली के खण्ड 1 में यह लिखा है कि ‘’राष्ट्रपति, कलेक्टर को आदेश दे कि : यदि एक महिला मतदाता या दलित मतदाता या वरिष्ठ नागरिक मतदाता या गरीब मतदाता या किसान मतदाता या कोई भी नागरिक मतदाता अपने जिले में शिकायत—— ’’ —— यहाँ क्यों महिला मतदाता, दलित मतदाता, गरीब मतदाता लिखा गया है, जबकि केवल कोई भी मतदाता कहना काफी होता ? ऐसा इसलिए क्योंकि यदि कोई धारा 1 का विरोध करता है तो पारदर्शी शिकायत प्रणाली कोई समर्थक उसे आसानी से महिला विरोधी, दलित विरोधी, गरीब विरोधी, किसान विरोधी आदि की छवि वाला बता सकता है। और भारत में बहुत बड़ी संख्या में कार्यकर्ताओं, नेताओं के पास महिलाओं, दलितों, आदिवासियों, गरीबों आदि का रक्षक बनने में महारत हासिल है। और यदि ये कार्यकर्ता नेता पारदर्शी शिकायत प्रणाली की धारा 1 का विरोध करते हैं तो पारदर्शी शिकायत प्रणाली के समथर्क इन्हें आसानी से महिला विरोधी, दलित विरोधी अदि की छवि वाला बता देंगें। इससे पारदर्शी शिकायत प्रणाली (टी सी पी) के समर्थक उन्हें शांत कराने में सफल हो सकेंगे।
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(1.6) ये तीन लाइन का सरकारी आदेश आम जनता को पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव/सुझाव डालने काअधिकार देगा
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‘पारदर्शी’ को हम परिभाषित करेंगे कि वो शिकायत/प्रस्ताव/सुझाव जो कभी भी , कहीं भी और किसी के भी द्वारा दृश्य हो और जाँची जा सके , ताकि कोई भी नेता ,कोई भी बाबू , कोई भी जज ,मीडिया उसे दबा न सके | आज यदि आप के यहाँ कोई भ्रष्ट मंत्री है और आप और लाखों लोग चाहते हों कि प्रधान मंत्री उस पर कार्यवाई करके उसको निकाल दे , तो आप क्या करेंगे?
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एक तरीका तो ये है कि आप या तो आंदोलन/धरना कर सकते हैं | मीडिया, जो कि 80% बिका हुआ है आपका साथ नहीं देगा और पुलिस के डंडे भी खाने पड़ेंगे वो अलग से | लाखों आम लोग पहले तो आपनी रोजी-रोटी त्याग कर धरना कर नहीं सकते, कुछ हज़ार लोग आयेंगे लेकिन कुछ दिनों बाद वे भी लौट जाएँगे और पुलिस की मार लोगों की संख्या को और भी कम कर देगी |
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दूसरा तरीका ये कि आप प्रधानमंत्री को पत्र लिखें। लेकिन चूँकि प्रधानमंत्री, अफसर आदि भ्रष्ट होते हैं , अत: वे बोलेंगे कि पत्र मिला नहीं या उसमें जो लिखा हुआ है उसमें आसानी से छेड़छाड़ कर सकते हैं | यदि लाखों करोड़ों लोग हस्ताक्षर अभियान भी चलायें तो, प्रधानमंत्री/मुख्यमंत्री हस्ताक्षरों को ‘जाली’ करार दे कर उनको अविश्वसनीय बता देते हैं। इसका कारण ये है कि हमारे देश में नागरिकों के हस्ताक्षरों का सरकार के पास कोई रिकार्ड नहीं है ताकि उनकी जांच की जा सके | पुलिस वाले अक्सर एफ.आई.आर भी नहीं लिखते क्योंकि मंत्री की उनके साथ पहचान आम नागरिक से कहीं ज्यादा होती है |
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लेकिन पारदर्शी शिकायत प्रणाली के अनुसार, यदि आपकी मंत्री के विरुद्ध शिकायत है तो आपको कलेक्टर के दफ्तर जाना होगा, वहाँ क्लर्क आपकी शिकायत को स्कैन कर लेगा और आपकी शिकायत का एक-एक शब्द प्रधानमन्त्री के वेबसाइट पर आ जायेगा | अब क्योंकि पूरे विश्व में लाखों-करोड़ों लोग इस वेबसाइट को देख सकते हैं, तो इसके साथ छेड़छाड़ करना असंभव है | और लाखों-करोडों समर्थक पटवारी के दफ्तर जाकर आपकी उस सच्ची शिकायत का समर्थन कर सकते हैं। और जांच की दृष्टि से उनके वोटर आई.डी के विवरण और अँगुलियों की छाप ली जायेगी तथा ये सब जानकारी प्रधानमंत्री की वेबसाइट पर रखी जायेगी | इस तरह शिकायत के समर्थकों की संख्या को अविश्वसनीय नहीं कहा जा सकेगा, बल्कि इस प्रकार से पारदर्शी शिकायत करने पर समाचार पत्र और टी. वी चैनल भी इसको नज़रअंदाज नहीं कर सकेंगे, अन्यथा उनकी ही विश्वसनीयता पर प्रश्न चिन्ह खड़ा हो जाएगा। इसीलिए उन्हें अधिक समर्थन प्राप्त शिकायतों के बारे में खबर दिखानी होगी। इससे ये शिकायत देश के कोने कोने तक पहुँच जायेगी और शिकायत के समर्थक देश भर के सांसद और अन्य जानी-मानी हस्तियों को बार-बार प्रश्न करके उनके नाक में दम कर देंगे कि उस सच्ची शिकायत का क्या हुआ ? सांसद भी शिकायत को नजरंदाज नहीं कर सकेंगे क्योंकि इसका प्रमाण रहेगा कि लाखों-करोड़ों व्यक्ति उस शिकायत का समर्थन कर रहे हैं और ये बात किसी के भी द्वारा कभी भी जाँची जा सकती है। क्योकि प्रमाणिकता के लिए वेबसाइट पर समर्थकों के अंगुली के छाप और वोटर आई.डी आदि विवरण उपलब्ध रहेंगे | इस प्रकार सांसदों पर दबाव पड़ेगा और सांसदों के द्वारा प्रधानमंत्री पर | ऐसे में प्रधानमन्त्री को कार्यवाई करनी ही होगी और यदि शिकायत सही पायी गयी तो मंत्री को निकालना होगा |
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इस प्रकार से डाली गयी शिकायत/प्रस्ताव/सुझाव जो लाखों-करोडों द्वारा समर्थित है को दबाना असंभव है और नेता, अफसर आदि पर जनता दबाव बना सकती है | सभी को यह मालूम रहेगा कि अमुक शिकायत/प्रस्ताव/सुझाव का समर्थन लाखों-करोड़ों व्यक्ति कर रहे है, इससे अमुक शिकायत को और भी बल मिलेगा |
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इस सिस्टम के आने से हर नागरिक एक रिपोर्टर बन सकता है, और कोई भी समाचार नागरिको के सामने रख सकता है। और दूसरे नागरिक इसको पढकर और समर्थन दे कर इसको फैला सकते है, जिससे सही ,निष्पक्ष और विश्वसनीय समाचार आगे आयेंगे। ऐसी प्रणाली के अभाव में आज मीडिया पक्षपाती और झूठे समाचार फैलाने में सक्षम बना हुआ है | आज मीडिया वो ही समाचार देता है जिसके लिए उसे पैसे दिए जाते हैं | (मीडिया को सुधारने के अन्य सुझाव अध्याय 44.33 और 44.34 में देखें)
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अब मैं ये बताता हूँ कि क्यों कुछ लोग पारदर्शी शिकायत प्रणाली का विरोध करते हैं ? वो इसीलिए ऐसा करते है क्योंकि पारदर्शी शिकायत प्रणाली मीडिया और विशिष्ट वर्ग के लोगों को दरकिनार करके हम आम नागरिकों को दूसरे नागरिकों के समक्ष अपने विचार रखने देता है | ये हमारी एकता को साबित करने की क्षमता को मजबूत करेगा। पारदर्शी शिकायत प्रणाली दलितों, गरीबों, महिलाएं , किसान, मजदूर, आदि को अपनी शिकायत पारदर्शी तरीके (जो हमेशा जाँची और देखी जा सके) से, प्रधानमंत्री की वेबसाइट पर रखने देता है | और इसीलिए दलित-विरोधी, गरीब-विरोधी, मैला-विरोधी, किसान-विरोधी, मजदूर-विरोधी, इस प्रस्तावित पारदर्शी शिकायत प्रणाली की सरकारी अधिसूचना के क़ानून-ड्राफ्ट से नफरत करते हैं |
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क्या यह इतना ही है ?
जी हाँ , जनता की आवाज -पारदर्शी शिकायत प्रणाली (टी सी पी) इतना ही है। और कुछ नहीं।
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अब प्रश्न ये उठता है कि ——- ये सिर्फ 3 पंक्ति का कानून गरीबी और भूखमरी की भयंकर समस्या का समाधान कैसे कर सकता है ? कैसे यह कानून उतने ही भयंकर भ्रष्टाचार की समस्या को पुलिस/न्यायधीशों के बीच से ख़त्म कर सकता है ? कैसे यह और भी समस्यों को समाप्त कर सकता है जैसा कि मैं दावा करता हूँ ?
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(1.7) तो कैसे ‘जनता की आवाजपारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली गरीबी को 3-4 महीने में कम कर देगा ?
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जब मैंने कहा कि 3 लाइन का यह कानून गरीबी और भ्रष्टाचार को 4 महीने में कम कर सकता है, तो आपको अवश्य यह मजाक या झूठ लगा होगा और मैं इसके लिए आपको कसूरवार नहीं ठहराऊंगा। और अब इन तीन लाइन को पढ़ने के बाद, आप अवश्य अत्यंत परेशान होंगे कि कैसे मासूम सा दिखने वाला यह तीन लाइन का क़ानून इतना बड़ा बदलाव लाएगा। आखिरकार जनता की आवाज में यही उल्लेख है – लोगों को अपनी शिकायत प्रधानमंत्री की वेबसाइट पर रखने दें यदि वे ऐसा चाहते हैं। ये आखिरकार क्या बदलाव ला सकता है ?
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जिस दिन प्रधानमंत्री पारदर्शी शिकायत प्रणाली की सरकारी अधिसूचना पर हस्ताक्षर कर देंगे, मैं करीब 200 शपथपत्र/एफिडेविट उनके सामने रखूँगा। इन सभी शपथपत्रों के प्रारूप/क़ानून-ड्राफ्ट मेरी वेबसाइट righttorecall . info पर दिए गए हैं, और कुछ शपथपत्रों के संक्षिप्तर विवरण इस घोषणा पत्र में दिए गए हैं। अपने पहले शपथपत्र को मैं कहता हूँ — नागरिकों और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी। ये नागरिकों और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी (MRCM) शपथपत्र 6 पृष्ठों का प्रस्तावित कानून है जो पांचवे अध्याय में है और जिसका शीर्षक है — नागरिकों और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी(MRCM)”। यह प्रस्तावित — नागरिकों और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी (MRCM) का क़ानून-ड्राफ्ट एक ऐसी प्रशासनिक व्यस्था बनाता है जिसके द्वारा भारत के प्रत्येक नागरिक को सीधे ही खनिजों की रॉयल्टी और भारत सरकार के प्लॉटों से भूमि का किराया मिलने लगेगा। उदाहरण के लिए, मान लें नवम्बर 2010 में खनिजों की रॉयल्टी और सरकारी प्लॉटों का किराया 60,000 करोड़ रूपए था। तो प्रस्तावित नागरिकों और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी (MRCM) कानून के अनुसार 20,000 करोड़ रूपए सेना को जायेंगे और बचे हुए 40,000 करोड़ रूपए में से प्रत्येक नागरिक को 400 रूपए मिलेंगे, जो उसके पोस्ट ऑफिस खाते या भारतीय स्टेट बैंक के खाते में जमा हो जायेंगे।
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क्या 75 करोड़ मतदाताओं में नकद पैसा वितरित करना इतना कठिन है ? नहीं, ऐसा नहीं है। यदि भारत का प्रत्येक वयस्क मतदाता महीने में एक बार अपने बैंक में पैसा निकलने जाये तो हमें केवल एक लाख क्लर्क की आवश्यकता पड़ेगी। क्या एक लाख क्लर्क इतनी बड़ी संख्या है ? नहीं। क्योंकि वर्तमान में भारतीय स्टेट बैंक में 300,000 का स्टॉफ हैं, और सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में कुल मिलाकर 6000,000 से अधिक स्टॉफ हैं। तो नागरिकों और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी (MRCM) क़ानून-ड्राफ्ट को सहायता देने के लिए जितने स्टॉफ चाहिएं वह बहुत ज्यादा नहीं है। प्रस्तावित नागरिकों और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी (MRCM) सरकारी अधिसूचना में मुख्य अधिकारी को वापस बुलाने का अधिकार शामिल है जो यह सुनिश्चित करता है कि भ्रष्टाचार कम से कम हो। आगे छठे अध्याय में उल्लिखित 7-8 पृष्ठ के क़ानून-ड्राफ्ट में इसका पूरा विवरण दिया गया है।
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अब मैं पाठकों से कुछ प्रश्न करूंगा। कृपया इन प्रश्नों के उत्तर देने के बाद ही इस पाठ को आगे पढ़ें। प्रश्नों की पृष्ठभूमि की जानकारी इस प्रकार है :
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  1. मान लें कि नागरिकों ने प्रधानमंत्री को पारदर्शी शिकायत प्रणाली कानून पर हस्तााक्षर करने पर बाध्य कर दिया है।
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  1. मान लें कि किसी ने नागरिकों और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी शपथपत्र प्रस्तुत किया है, जिसमें यह उल्लेख है कि खनिज रॉयल्टी और भूमि का किराया सीधे ही जनता को मिलना चाहिए।
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  1. अब बाद के एक पाठ में, मैने यह बताया है कि कैसे भारत के 72 करोड़ नागरिकों को प्रस्तावित नागरिकों और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी (MRCM) एफिडेविट के बारे में एक महीने के अन्दर पता चल जायेगा।
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  1. भारत के 72 करोड़ वयस्क नागरिकों में से, इस प्रश्न के प्रयोजन के लिए, कृपया आर्थिक रूप से सबसे पिछडे़ 80 प्रतिशत लोग अर्थात भारत में आर्थिक रूप से सबसे पिछडे़ 55 करोड़ वयस्क भारत के नागरिकों के बारे में सोचिए जो बड़ी कठिनाई से 50 रूपए प्रतिदिन कमा पाते हैं।
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अब आप पाठकों से मेरा पहला प्रश्न है : इन 55 करोड़ नागरिक मतदाताओं, जो एक दिन में 50 रुपए बड़ी कठिनाई से कमा पाते हैं, में से कितने लोग कहेंगे कि ‘मुझे प्रति व्यक्ति प्रति महीने ये 400 रूपए या चाहे जितनी भी राशि हो, नहीं चाहिए और ये पैसा भारत सरकार के खाते में जाने दें’ ?
कृपया उपरोक्त प्रश्न का उत्तर देने के बाद ही आगे पढ़े।
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मेरा उत्तर है – 5 प्रतिशत से भी कम लोग ये कहेंगे कि मुझे ये 200 रूपए प्रति व्यक्ति प्रति माह नहीं चाहिए। इसलिए 72 करोड़ वयस्क नागरिकों में से सबसे नीचे के 55 करोड़ नागरिकों में से ज्यादातर लोगों की एक ही सोच होगी – मेरा क्या जाएगा ? मात्र 3 रूपए। (टीसीपी क़ानून-ड्राफ्ट की धारा 2 देखें) और कुछ नहीं। और अगर भाग्य ने साथ दिया तो मुझे प्रति आदमी प्रति माह 400 रूपए मिलेंगे। आपका इस पहले प्रश्न बारे में क्या उत्तर है ? आपकी राय में सबसे नीचे के 55 करोड़ लोगों में से कितने नागरिक कहेंगे कि मुझे यह खनिज रॉयल्टी और भूमि के किराए का पैसा नहीं चाहिए?
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अब पाठकों से मेरा एक और प्रश्न है। इस प्रश्न के लिए पृष्ठभूमि की जानकारी इस प्रकार है :
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  1. मान लें कि प्रधानमंत्री को पारदर्शी शिकायत प्रणाली कानून (टी सी पी) पर हस्ताक्षर करने के लिए बाध्य कर दिया गया है।
  2. मान लें किसी ने नागरिकों और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी (MRCM) शपथपत्र प्रस्तुत कर दिया और 50 करोड़ नागरिकों ने इस पर हाँ दर्ज करा दी है।
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पाठकों से मेरा दूसरा प्रश्न है — क्या आप समझते हैं कि प्रधानमंत्री यह कहने का साहस करेंगे कि मैं प्रस्तावित नागरिकों और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी (MRCM) कानून पर हस्ताक्षर नहीं करूंगा अर्थात क्या कोई प्रधानमंत्री पचास करोड़ या उससे अधिक नागरिकों से प्राप्त हाँ को न मानने/अस्वीाकार करने का साहस करेगा ? फिर से अनुरोध है कि कृपया ऊपर उल्लिखित प्रश्न का उत्तर देने के बाद ही आगे पढ़ें।
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पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली प्रारूप के खण्ड 3 को कृपया फिर से पढ़ें। इस धारा में साफ-साफ लिखा है कि सभी 72 करोड़ नागरिक मतदाताओं द्वारा किसी शपथपत्र पर हाँ दर्ज कर दिया जाता है तब भी प्रधानमंत्री को एफिडेविट में प्रस्तावित कानून पर हस्ताक्षर करने की बिलकुल जरूरत नहीं है। हाँ/ना की संख्या प्रधानमन्त्री पर बाध्य नहीं है | प्रधानमंत्री का निर्णय अंतिम है |
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लेकिन किसी भी प्रधान मंत्री में इतना साहस नहीं होगा कि वह पचास करोड़ नागरिक मतदाताओं को मना कर दे। इसलिए मेरा उत्तर है — प्रधानमंत्री नागरिकों और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी (एम.आर.सी.एम) कानून पर हस्ताक्षर करेंगे। क्यों ? इसलिए कि प्रत्येक नागरिक जिसने हाँ दर्ज किया है वह जानता है कि उसके पचास करोड़ साथी नागरिक उसकी मांग का समर्थन कर रहे हैं और इसलिए उनमें से प्रत्येक खुले तौर पर उस रूप में प्रधानमंत्री का विरोध करेगा जिस रूप में वह उचित समझता है। और प्रधानमंत्री भी जानते हैं कि नागरिक गण विरोध प्रदर्शन करेंगे और वे यह भी जानते हैं कि उनके पचास लाख पुलिसकर्मी इतने अधिक नागरिकों को नहीं रोक सकते। इसलिए डर के मारे प्रधानमंत्री इतने अधिक नागरिकों की अनदेखी करने का साहस नहीं करेंगे। इसलिए पारदर्शी शिकायत प्रणाली के आ जाने के एक-दो तीन महीने के भीतर ही नागरिक गण प्रधानमंत्री को नागरिकों और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी (एम.आर.सी.एम) कानून पर हस्ताक्षर करने पर बाध्य करने में समर्थ होंगे और नागरिकों और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी (एम.आर.सी.एम) कानून पर हस्ताक्षर करने के एक दो महीने के भीतर ही नागरिकगण भारत सरकार के प्लॉटों से भूमि का किराया और खनिज रॉयल्टीे प्राप्त करने लगेंगे और इस प्रकार गरीबी कम हो जाएगी। बाद में सुझाए गए संपत्ति – कर सुधारों से औद्योगिक उत्पादन में वृद्धि होगी और गरीबी पूरी तरह समाप्त हो जाएगी। इन कर सुधारों का इस किताब के चैप्टर 25 में विस्तार से उल्ले‍ख किया गया है।
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यही वह स्थान है जहाँ जनता की आवाज-पारदर्शी शिकायत प्रणाली की शक्ति उभरकर सामने आती है। पारदर्शी शिकायत प्रणाली के बिना प्रधानमंत्री कभी भी नागरिकों और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी (एम.आर.सी.एम) पर हस्ताक्षर नहीं करेंगे क्योंकि वे और सांसद गण खनिज रॉयल्टी को हड़पना चाहते हैं। लेकिन यदि पारदर्शी शिकायत प्रणाली की अधिसूचना गैजेट में प्रकाशित हो जाती है तो प्रधानमंत्री नागरिकों और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी (एम.आर.सी.एम) पर हस्तारक्षर करने को बाध्य होंगे ।
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पारदर्शी शिकायत प्रणाली कैसे व्यवस्था में इतना बड़ा बदलाव ला पाती है ?
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पारदर्शी शिकायत प्रणाली की धारा – 2 नागरिकों को यह अनुमति देती है कि वे धारा 1 में प्रस्तुत किए गए प्रारूप पर हाँ दर्ज करें और यही धारा 2 नागरिकों को यह भी बताती है कि करोड़ों नागरिक उनके साथ हैं। नागरिकों के लिए तब बदलाव लाना आसान हो जाता है जब करोड़ों नागरिक किसी प्रस्ताव पर सहमत हों और ये करोड़ों नागरिक जानते हो कि करोड़ों नागरिक अमुक प्रस्ताव का समर्थन कर रहे हैं। इस प्रक्रिया से वे अकेला महसूस नहीं करते। ठीक उसी प्रकार जैसे कोई व्यक्ति भीड़ में ज्यादा शक्तिशाली हो जाता है। पारदर्शी शिकायत प्रणाली (टी सी पी) मतदाताओं को तब और अधिक शक्तिकशाली बना देता है जब किसी प्रस्ताव पर समर्थन बहुमत द्वारा साबित हो गया हो।
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(1.8) करोड़ों नागरिकों को यह कैसे पता चलेगा कि नागरिकों और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी के लिए(एम.आर.सी.एमशपथपत्र प्रस्तुत हो गया है ?
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मैं आपको पहले एक सच्ची घटना बताता हूँ। वर्ष 2002 में, भारत सरकार ने एक योजना शुरू की कि प्रत्येक वरिष्ठ नागरिक जिसकी वार्षिक आय 50,000 रुपए से कम है उन्हें हर महीने 200 रूपए मिलेंगे। भारत सरकार ने इस योजना का प्रचार टीवी, समाचारपत्र, रेडियो कहीं भी नहीं किया। फिर भी लगभग 10 महीने की छोटी समय अवधि में ही लगभग हर पात्र वरिष्ठ नागरिक का नाम इस योजना में दर्ज हो चुका था। यह बात कैसे फैली ? जब कोई बात लोगों के तत्काल,निजी और सीधे हितो से जुड़ी होती है तो वह बात बिजली के करंट की तरह फैलती है।
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एक बार नागरिक गण प्रधानमंत्री को पारदर्शी शिकायत प्रणाली पर हस्ताक्षर करने को बाध्य कर देते हैं, और एक बार नागरिकों और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी के लिए एफिडेविट दाखिल हो गया तो यह प्रस्ताव भी उतनी ही तेजी से फैलेगा। क्योंकि नागरिकों और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी में लोगों का अपना सीधा, तत्काल और निजी हित है। एक नागरिक को सिर्फ इतना भर करना है कि – वह पटवारी के कार्यालय में 10-15 मिनट के लिए जायें और 3 रूपए का शुल्क जमा कर के इस शपथपत्र पर हाँ दर्ज करें। और चूंकि नागरिकों और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी (एम.आर,सी.एम) इन लोगो को सीधा और तत्काल फायदा देता है, अत:ज्यादा से ज्यादा नागरिक इसके बारे में अपने पड़ोसियों, रिश्तेदारों, दोस्तों आदि को बताएँगे। इस तरह नागरिकों और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी की बात करोड़ों नागरिकों तक कुछ ही दिनों के भीतर पहुंच जायेगी |
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(1.9) जनता की आवाज – पारदर्शी शिकायत प्रणाली का सरकारी आदेश पुलिस में भ्रष्टाचार को कम कैसेकरेगा ?
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अब पाठकों से मेरा तीसरा प्रश्न है —- अमेरिका की पुलिस में भ्रष्टाचार क्यों कम है ?
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एक, और सिर्फ एक कारण जिसकी वजह से अमेरिका की पुलिस में भ्रष्टाचार कम है, वह यह है कि —- अमेरिका केनागरिकों के पास अपने जिले के जिला पुलिस प्रमुख को हटाने की प्रक्रिया है। इसलिए अमेरिका में जिला पुलिस प्रमुख बहुत कम घूस लेता है और यह भी सुनिश्चित करता है कि छोटे/कनिष्ठ अधिकारी बहुत घूस न ले। अगर अमेरिका में किसी पुलिस प्रमुख को यह पता चलता है कि उसका कोई कनिष्ठ अधिकारी घूस ले रहा है तो वो उसके खिलाफ तत्काल स्टिंग आपरेशन करवाता है, साक्ष्य इकट्ठे करता है और उसे नौकरी से निकाल देता है। क्योंकि उसे डर है कि अगर उसके नीचे काम कर रहे अधिकारी घूस लेने लगेगें तो नागरिक खुद उसे नौकरी से निकाल सकते हैं। लेकिन भारत में , नागरिकों के पास पुलिस प्रमुख को हटाने की ऐसी कोई प्रक्रिया नहीं है। और इसलिए यहाँ पुलिस का उच्च अधिकारी न केवल घूस लेता है बल्कि वह अपने कनिष्ठ अधिकारयों से भी ज्यादा से ज्या‍दा घूस वसूलने को कहता है। भारत में एक ठेठ (टिपिकल) पुलिस प्रमुख अपने कनिष्ठ अधिकारियों द्वारा जमा किए गए घूस का आधा हिस्सा खुद रख लेता है और शेष आधे हिस्से को विधायकों, गृह मंत्री और मुख्यमंत्री को दे देता है। ( मैंने अध्याय 2 में इसका विस्तृत विवरण दिया है।)
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मैंने एक सरकारी अधिसूचना का एक क़ानून-ड्राफ्ट अध्याय 22 में प्रस्तुत किया है, जो मुख्यमंत्री द्वारा हस्ताक्षर किए जाने के बाद एक प्रक्रिया सृजित करेगी जिसके द्वारा अमुक जिले के मतदाता जब भी चाहे भ्रष्ट जिला पुलिस प्रमुख को नौकरी से निकालने में समर्थ हो सकेंगे। मैंने इस क़ानून-ड्राफ्ट को ‘प्रजा अधीन पुलिस कमिश्नर’ (पुलिस कमिश्नर को वापस बुलाने का अधिकार) नाम दिया है। यह क़ानून-ड्राफ्ट हमारे संविधान के 33 दर्जन अनुच्छेदों में से प्रत्येक के साथ और मौजूदा सभी कानूनों के साथ शत-प्रतिशत संगत है। इस क़ानून-ड्राफ्ट का विवरण इस पुस्तक में ”पुलिस सुधार” से संबंधित अध्याय 22 में दिया गया है।
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अब पाठकों से मेरा चौथा प्रश्न है —— क्या भारत का कोई भी मौजूदा मुख्यमंत्री, चाहे वह कांग्रेस की शीला दीक्षित हो, या बीजेपी के मोदी हों, या सीपीएम के भट्टाचार्य हो, या डी एम के के करूणानिधि हों, क्या आज जिला पुलिस कमिश्नर को बदलने के लिए जनता को समर्थ बनाने वाले किसी कानून पर कभी हस्ताक्षर करेंगे ? मेरा अनुमान है — नहीं। क्योंकि यदि नागरिकों को जिला पुलिस आयुक्त/कमिश्नर को हटाने की प्रक्रिया मिल जाती है तो कमिश्नर डर जाएंगे और अपनी मासिक घूस वसूली को 1 करोड़ से कम करके मात्र एक लाख रूपए कर देंगे। और तब उस स्थिति में पुलिस कमिश्नर जो मासिक हफ्ता विधायक, गृहमंत्री, और मुख्यमंत्री को देते हैं वह भी कम होकर 50 लाख रूपए से मात्र 50 हजार रूपए हो जाएगा। और इसलिए वर्तमान विधायक, मुख्यमंत्री आदि भी एक ऐसा कानून लागू करने से मना कर देंगे जो हम आम लोगों को जिला पुलिस कमिश्नर को बदलने की अनुमति देता हो।
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लेकिन स्थिति तब बदल जाती है जब हम नागरिक गण किसी प्रकार प्रधानमंत्री को प्रस्तावित ‘जनता की आवाज पारदर्शी शिकायत प्रणाली की सरकारी अधिसूचना पर हस्ताक्षर करने के लिए बाध्य कर देते है। मान लीजिए, नागरिकों ने प्रधानमंत्री को प्रस्तावित पारदर्शी शिकायत प्रणाली की सरकारी अधिसूचना पर हस्ताक्षर करने के लिए बाध्य कर दिया। तो कोई भी व्यक्ति जिला पुलिस कमिश्नर को नौकरी से निकालने या वापस बुलाने की प्रक्रिया का शपथपत्र दाखिल कर सकेगा। ज्यादातर नागरिक यह सोचेंगे कि “यदि जिला पुलिस कमिश्नर को वापस बुलाने (हटाने) का क़ानून पुलिस में व्याप्त भ्रष्टाचार को 5 प्रतिशत तक भी कम कर देता है तो मेरा तीन रूपया खर्च करना सार्थक है।” . और सबसे बड़ा कारण जो नागरिकों को जिला पुलिस कमिश्नर को वापस बुलाने के शपथपत्र पर हाँ दर्ज करने के लिए प्रेरित करेगा वह है — पुलिस वालों में व्याप्त भ्रष्टाचार के विरूद्ध घृणा। पुलिस वाले एक महीने में अवैध रूप से लाखों रूपए बनाते हैं और रूपया वसूलने के लिए आम नागरिको पर दमन करते है। इसलिए यदि राज्य के 70 से 80 प्रतिशत नागरिक पारदर्शी शिकायत प्रणाली की धारा 2 का प्रयोग करके हाँ दर्ज करवाते हैं तो मुख्य्मंत्री बहुमत के सामने डर के मारे झुक जाएगा, अपनी दिखावे की हेकड़ी छोड़ देगा और प्रजा अधीन पुलिस कमिश्नर (जिला पुलिस कमिश्नर को वापस बुलाने का अधिकार ) कानून पर हस्ताक्षर कर देगा। किसी सरकारी अधिकारी अथवा न्यायधीश के अन्दर सबसे बड़ा भय नौकरी जाने का ही होता है। इसलिए जनता द्वारा जिला पुलिस कमिश्नर को हटाने की प्रक्रिया प्राप्त कर लेने के 14 दिनों के भीतर पुलिस कमिश्नर के साथ साथ अन्य पुलिस वालों में भ्रष्टाचार 99 प्रतिशत तक कम हो जाएगा। क्योंकि तब या तो पुलिस प्रमुख ईमानदारी से कार्य करेगा या नौकरी गवाँयेगा। इस प्रकार पारदर्शी शिकायत प्रणाली के पारित हो जाने के तीन महीने के भीतर ही पुलिस के भ्रष्टाचार में कमी आ जायेगी।
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पुलिस प्रमुख को वापस बुलाने का अधिकार तो केवल एक शुरुआत भर है। इसके बाद वे प्रक्रियाए आती है जिनके द्वारा हम आम लोग प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, विधायकों, सांसदों, उच्च्तम न्यायलय के मुख्य न्यायधीश, उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायधीश, रिजर्व बैंक के गवर्नर, स्टे‍ट बैंक के अध्य‍क्ष, जिला शिक्षा अधिकारी, महापौर/मेयर, और राष्ट्रीय, राज्य एवं जिला स्त‍रों के 251 पदों के अधिकारियों को बदल सकेंगे। आपके अनुमान में किस अधिकारी को वापस बुलाने के कानून का जनता विरोध करेगी ? मेरा उत्तर है – एक भी नहीं। इसलिए पारदर्शी शिकायत प्रणाली के पारित होने के बाद, इस बात की बहुत अधिक उम्मीद है कि छह महीनों के भीतर नागरिक गण प्रधानमंत्री को बाध्य कर देंगे कि वह 251 से भी अधिक पदों के लिए नागरिको द्वारा बदलने की प्रक्रिया को लागू कर दे। और इस प्रकार इन सभी पदों से भ्रष्टाचार समाप्त हो जाएगा।
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(1.10) उन नेताओंबुद्धिजीवियों की निंदा कैसे करें जो ‘जनता की आवाज – पारदर्शी शिकायत प्रणाली‘ काविरोध करते है ?
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पारदर्शी शिकायत प्रणाली इससे ज्यादा या कम कुछ नहीं कहता कि —- यदि कोई नागरिक अपनी शिकायत प्रधानमंत्री की वेबसाइट पर रखना चाहता है तो उसे ऐसा करने की अनुमति दी जाए।
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अब यदि कोई नेता अथवा कोई बुद्धिजीवी किसी भी आधार पर पारदर्शी शिकायत प्रणाली क़ानून-ड्राफ्ट की धारा 1 का विरोध करता है तो मेरे जैसा ‘जनता की आवाज – पारदर्शी शिकायत प्रणाली’ का समर्थक यह कहते हुए उस नेता, बुद्धिजीवी को कोस सकता है कि —— ‘तुम नहीं चाहते कि महिला मतदाता, दलित मतदाता, गरीब मतदाता, वरिष्ठ नागरिक मतदाता, किसान, मजदूर आदि अपनी शिकायत प्रधानमंत्री की वेबसाइट पर डाल सके’। और मैं उस पर महिला विरोधी, दलित विरोधी, गरीब विरोधी, किसान विरोधी, मजदूर विरोधी आदि होने का आरोप लगाते हुए उसकी निंदा कर सकता हूँ। यही कारण है कि सभी बुद्धिजीवी, नेता आदि पारदर्शी शिकायत प्रणाली के क़ानून-ड्राफ्ट का विरोध करते है, लेकिन किसी भी नेता, बुद्धिजीवी ने आज तक इस क़ानून-ड्राफ्ट का सार्वजनिक रूप से विरोध करने का साहस नहीं किया है। इसलिए ‘जनता की आवाज – पारदर्शी शिकायत प्रणाली’ के समर्थको को चाहिए कि वे बुद्धिजीवियों, नेताओं आदि से ‘जनता की आवाज पारदर्शी शिकायत प्रणाली’ के क़ानून-ड्राफ्ट की धारा 1 से 3 पर अपना विचार सार्वजनिक रूप से रखने को कहे। जब कार्यकर्ता उनसे ऐसा आग्रह करेंगे तो ये बुद्धिजीवी, नेता आदि बेचैन हो जाएंगे और विषय को टालने के लिए हाँ , हूँ करना शुरू कर देंगे।
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मैं पारदर्शी शिकायत प्रणाली के समर्थक कार्यकर्ताओ से अनुरोध करूंगा कि वे पारदर्शी शिकायत प्रणाली पर इसकी तीनो धाराओ के संदर्भ में चर्चा करे। कृपया बुद्धिजीवीयों एवं नेताओ से पुछिए कि ‘आप क्यों नागरिकों की किसी शिकायत को प्रधानमंत्री की वेबसाइट पर आने देने से मना करते हैं, अथवा आप क्यों पारदर्शी शिकायत प्रणाली क़ानून-ड्राफ्ट की धारा 1 का विरोध करते हैं ? यह उस नेता और बुद्धिजीवी को इस हद तक रक्षात्मक बना देगा, कि वह अपना बचाव बिलकुल नहीं कर सकेगा। तब इन नेताओ, बुद्धिजीवियों के समर्थको को यह समझाना सरल हो जायेगा कि ये लोग गरीब/आम नागरिको के विरोधी और धनिकों के समर्थक है। कृपया ध्यान दें कि किसी नेता बुद्धिजीवी से बातचीत करने का प्रयोजन उसे इस बात पर मनाने का नहीं है कि पारदर्शी शिकायत प्रणाली अच्छा क़ानून है, क्योंकि धनवान लोगों का कोई भी ऐजेंट इस कानूनी ड्राफ्ट से कभी सहमत नहीं होगा। बातचीत का उद्देश्य नेता, बुद्धिजीवी की सच्चाई उनके भक्तो-समर्थकों के सामने लेकर आना है, कि वह नेता, बुद्धिजीवी अमीरों का ऐजेंट है और गरीबो का समर्थक होने का सिर्फ दिखावा कर रहा है।
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इस प्रकार सच्चे, राष्ट्रवादी और गरीब समर्थक कार्यकर्ता उस नेता, बुद्धिजीवी का साथ छोड़ देंगे जिससे अमुक नेता, बुद्धिजीवी की ताकत घटेगी और पारदर्शी शिकायत प्रणाली के समर्थको की संख्या बढ़ेगी। उत्तरोत्तर पारदर्शी शिकायत प्रणाली के समर्थक बढ़ते और इन कानूनो का विरोध करने वाले नेता और बुद्धिजीवी घटते चले जाएंगे। इन कार्रवाइयों से इस बात की उम्मीाद बढ़ेगी कि प्रधानमंत्री/मुख्यमंत्री ‘जनता की आवाज – पारदर्शी शिकायत प्रणाली’ पर हस्ताक्षर करने को बाध्य हो।
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(1.11) ‘जनता की आवाज – पारदर्शी शिकायत प्रणाली को लागू करवाने में आप कैसे मदद कर सकते हैं ?
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इसी पुस्तक के अध्याय 13, मैं मैंने चालीस छोटे छोटे उपायों की सूची प्रस्तुत की है। प्रति सप्ताह सिर्फ दो से चार घंटे का समय देकर आप इस कानूनी ड्राफ्ट को भारत में लागू करवाने में सहायता कर सकते है। कृपया विस्तृत विवरण के लिए अध्याय 13 देखें।
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(1.12) किसी ने इस बारे में पहले क्यों नहीं सोचा ?
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नेता और बुद्धिजीवी पूछ सकते है, कि यदि यह तीन पंक्तिंयों का क़ानून-ड्राफ्ट गरीबी कम कर सकता है तो पहले किसी ने इस बारे में क्यों नहीं सोचा ? लेकिन यदि किसी ने इस बारे में पहले कभी नहीं सोचा, इसका मतलब यह नहीं है कि ऐसा कानून हो ही नहीं सकता। उदाहरण के लिए रोमन और यूनानियों ने शहरों/साम्राज्यों के लेखे रखे, ज्यामिति और तर्कशास्त्र में काफी प्रगति की लेकिन अंकगणित की खोज नहीं कर सके। इसी प्रकार इनकास और माया ने कैलेण्डर बनाए, महल बनाए, पुल बनाए लेकिन वे भी पहले अंकगणित के शून्य की खोज नहीं कर सके थे। यह प्रस्तावित जनता की आवाज -पारदर्शी शिकायत प्रणाली का क़ानून-ड्राफ्ट राजनैतिक अंकगणित का शून्य है । ठीक उसी प्रकार जैसे अंकगणित का शून्य सदियों तक खोजा नहीं जा सका, उसी प्रकार राजनीतिक अंकगणित का शून्य अब तक खोजा नहीं जा सका। इसमें किसी को कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
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(1.13) कैसे ‘जनता की आवाज –पारदर्शी शिकायत प्रणाली‘ राजनैतिक अंकगणित का शून्य है ?
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जैसे अंकगणित का शून्य अंकगणित में कठिन से कठिन सवाल को आसान बना देता है और गणित की अन्य शाखाओं में सुधार ले आता है। ठीक उसी प्रकार पारदर्शी शिकायत प्रणाली का क़ानून अनेक कानूनों जैसे नागरिकों और सेना को खनिज रॉयल्टी , रॉइट टू रिकॉल (भ्रष्ट को बदलने का अधिकार) आदि को लागू करना आसान कर देता है। उदाहरण के लिए XLVII और XXII को जोड़ने का प्रयास कीजिए, और फिर 47 और 23 को जोड़ने का प्रयास कीजिए। आप जान जाएंगे कि कैसे शून्य के आविष्कार ने जोड़ को सरल बना दिया है। और इसी प्रकार XLVII को XXII से गुणा करने का प्रयास कीजिए और 47 का 22 से गुणा कीजिए। इसके बाद XLV को IX से भाग दीजिए, और तब 45 को 9 से भाग दीजिए। और ये तो केवल दो ही अंक वाली संख्याएं है। कृपया चार छह अंकों वाले रोमन संख्याओं और फिर दशमलव के साथ जोड़, घटाव, गुणा, भाग का प्रयास कीजिए। इस प्रकार, जैसे शून्य आधारभूत अंकगणितीय प्रश्नों जैसे जोड़-बाकी ,गुणा-भाग को सरल बना देता है, उसी प्रकार पारदर्शी शिकायत प्रणाली क़ानून अन्य राजनितिक समस्याओ के समाधान के लिए आवश्यक कानूनो को नागरिको की सहमति से बनाना आसान कर देता है।
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‘जनता की आवाज – पारदर्शी शिकायत प्रणाली ठीक उसी प्रकार काम करती है जैसे अंकगणित में शून्य काम करता है। ये इस बात को सिद्ध करने अथवा सिद्ध नहीं करने के काम को आसान बनाता है कि बहुमत किसी प्रस्ताव को पसन्द करता है या नहीं। और इस प्रकार यह नागरिकों के जरिये अधिकारियों पर नियंत्रण करने के कार्य को आसान बनाता है। राजनीति यह नहीं है कि कैसे शासक नागरिकों पर शासन करेगा, बल्कि यह इस बारे में है कि नागरिकों के धन को हड़पे जाने से कैसे शासक को रोका जा सकता है। पारदर्शी शिकायत प्रणाली क़ानून इस अच्छी राजनीति को आसान बनाता है।
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(1.14) सारांश
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मैंने यह बताया कि कैसे सिर्फ 3 लाइनों का यह टीसीपी कानून गरीबी, पुलिस में भ्रष्टाचार आदि को कम करेगा। यदि आपको यह कानून पसंद आया है तो अपने सांसद को एसएमएस द्वारा आदेश भेजे कि पारदर्शी शिकायत प्रणाली की उपरोक्त तीन धाराओ को गैजेट में प्रकाशित किया जाए। इस क़ानून को पारित करवाने के लिए आपका यह छोटा सा कदम सबसे महत्त्वपूर्ण है। कृपया इसके बाद इसी पुस्तक का अध्याय 13 जरूर पढ़े। अध्याय 13 में उन कार्यों की सूची दी गई है जिनका पालन करके कोई भी कार्यकर्ता इस क़ानून को देश में लागू करवाने में सहायता कर सकता है। और यदि भारत भर में केवल 2 लाख कार्यकर्ता भी एक सप्ताह में सिर्फ 2 से 4 घंटे इन कार्यो का अनुपालन करें तो भारत की व्यवस्था में चमत्कारिक सुधार आ सकते है। इस क़ानून को लागू कराने के लिए सिर्फ आपके समय की आवश्यकता है दान ,चंदे आदि के रूप में किसी प्रकार के धन की नही।